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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 3: यथास्थिति
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श्लोक 7
श्लोक
3.10.7
तद्विलोक्य वियद्व्यापि पुष्करं यदधिष्ठितम् ।
अनेन लोकान् प्राग्लीनान् कल्पितास्मीत्यचिन्तयत् ॥ ७ ॥
अनुवाद
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तत्पश्चात् उन्होंने देखा कि जिस कमल पर वे विराजमान थे, वह ब्रह्मांड में व्याप्त था, और उन्होंने विचार किया कि सभी ग्रहों को कैसे बनाया जाए, जो पहले उसी कमल में विलीन थे।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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