श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 10: सृष्टि के विभाग  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  3.10.12 
 
 
विश्वं वै ब्रह्मतन्मात्रं संस्थितं विष्णुमायया ।
ईश्वरेण परिच्छिन्नं कालेनाव्यक्तमूर्तिना ॥ १२ ॥
 
अनुवाद
 
  यह विराट जगत काल के माध्यम से भगवान से अलग हो गया है। काल भगवान का अप्रकट और निर्विशेष रूप है। यह विराट जगत विष्णु की उसी भौतिक शक्ति के प्रभाव में भगवान की वस्तुगत अभिव्यक्ति के रूप में स्थित है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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