श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 1: विदुर द्वारा पूछे गये प्रश्न  »  श्लोक 43
 
 
श्लोक  3.1.43 
 
 
नूनं नृपाणां त्रिमदोत्पथानां
महीं मुहुश्चालयतां चमूभि: ।
वधात्प्रपन्नार्तिजिहीर्षयेशो-
ऽप्युपैक्षताघं भगवान् कुरूणाम् ॥ ४३ ॥
 
अनुवाद
 
  कृष्ण भगवान होते हुए भी और पीड़ित के दुख-दर्द को दूर करने की हमेशा इच्छा रखते हुए कुरुओं का वध करने से स्वयं को बचाते रहे, यद्यपि वे देख रहे थे कि कुरुओं ने सभी प्रकार के पाप किए हैं और यह भी देख रहे थे कि अन्य राजा तीन प्रकार के मिथ्या गर्व के वश में होकर अपनी प्रबल सैन्य गतिविधियों से पृथ्वी को हमेशा अशांत कर रहे हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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