श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 1: विदुर द्वारा पूछे गये प्रश्न  »  श्लोक 41
 
 
श्लोक  3.1.41 
 
 
सौम्यानुशोचे तमध:पतन्तं
भ्रात्रे परेताय विदुद्रुहे य: ।
निर्यापितो येन सुहृत्स्वपुर्या
अहं स्वपुत्रान् समनुव्रतेन ॥ ४१ ॥
 
अनुवाद
 
  हे भद्रपुरुष, मैं दुखी हूँ उस (धृतराष्ट्र) के लिए जिसने अपने भाई की मृत्यु के पश्चात् उसके साथ विरोध किया। मैं उसका हितैषी हूं, पर उसने अपने पुत्रों द्वारा अपनाई नीति का अनुसरण किया और मुझे घर से निकाल दिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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