श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 1: विदुर द्वारा पूछे गये प्रश्न  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  3.1.18 
 
 
पुरेषु पुण्योपवनाद्रिकुञ्जे-
ष्वपङ्कतोयेषु सरित्सर:सु ।
अनन्तलिङ्गै: समलङ्कृतेषु
चचार तीर्थायतनेष्वनन्य: ॥ १८ ॥
 
अनुवाद
 
  वे कृष्ण का चिंतन करते हुए अकेले ही कई पवित्र स्थानों जैसे अयोध्या, द्वारका और मथुरा से यात्रा करने निकल पड़े। उन्होंने उन जगहों की यात्रा की जहां पेड़-पौधे, पहाड़ियाँ, बगीचे, नदियां और झीलें सभी पवित्र और पाप रहित थे और जहां विराट रूप के विग्रह मंदिरों की शोभा बढ़ाते हैं। इस प्रकार उन्होंने तीर्थयात्रा पूरी की।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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