श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 1: विदुर द्वारा पूछे गये प्रश्न  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  3.1.16 
 
 
स्वयं धनुर्द्वारि निधाय मायां
र्भ्रातु: पुरो मर्मसु ताडितोऽपि ।
स इत्थमत्युल्बणकर्णबाणै-
र्गतव्यथोऽयादुरु मानयान: ॥ १६ ॥
 
अनुवाद
 
  इस तरह अपने कानों से छेदकर बाणों द्वारा घायल और अपने हृदय के भीतर दुखी विदुर ने अपना धनुष दरवाजे पर रख दिया और अपने भाई के महल को छोड़ दिया। उन्हें कोई पछतावा नहीं था क्योंकि वे प्रकृति के नियमों को सर्वोपरि मानते थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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