श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 1: विदुर द्वारा पूछे गये प्रश्न  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  3.1.15 
 
 
क एनमत्रोपजुहाव जिह्मं
दास्या: सुतं यद्बलिनैव पुष्ट: ।
तस्मिन् प्रतीप: परकृत्य आस्ते
निर्वास्यतामाशु पुराच्छ्‌वसान: ॥ १५ ॥
 
अनुवाद
 
  "कौन इस रखैल के बेटे को यहाँ आने की इजाजत देता है? अपने उन्हीं लोगों के खिलाफ जासूसी करता है जिन्होंने उसे पाला-पोसा है। इसे इस महल से तुरंत बाहर करो और उसे केवल साँस लेने दो।"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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