वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् भागवतम
»
स्कन्ध 3: यथास्थिति
»
अध्याय 1: विदुर द्वारा पूछे गये प्रश्न
»
श्लोक 14
श्लोक
3.1.14
इत्यूचिवांस्तत्र सुयोधनेन
प्रवृद्धकोपस्फुरिताधरेण ।
असत्कृत: सत्स्पृहणीयशील:
क्षत्ता सकर्णानुजसौबलेन ॥ १४ ॥
अनुवाद
play_arrowpause
विदुर, जिनके सदाचरण का सभी सम्मानित लोग आदर करते थे, वे इस प्रकार से बोल रहे थे तो दुर्योधन ने उनका अपमान कर दिया। दुर्योधन गुस्से से भरा हुआ था और उसके होंठ काँप रहे थे। दुर्योधन कर्ण, अपने छोटे भाइयों और अपने मामा शकुनी के साथ था।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.