अत्रेरपत्यमभिकाङ्क्षत आह तुष्टो
दत्तो मयाहमिति यद् भगवान् स दत्त: ।
यत्पादपङ्कजपरागपवित्रदेहा
योगर्द्धिमापुरुभयीं यदुहैहयाद्या: ॥ ४ ॥
अनुवाद
अत्रि मुनि ने संतान प्राप्ति हेतु भगवान से प्रार्थना की और उनके इस निस्स्वार्थ भाव से खुश होकर, भगवान ने स्वयं ही अत्रि के पुत्र दत्तात्रेय (दत्त, अत्रि के पुत्र) के रूप में अवतार लेने का वचन दिया। भगवान के चरणों के आशीर्वाद से अनेक यदु, हैहय आदि योद्धा और राजा पवित्र हुए और उन्हें भौतिक और आध्यात्मिक दोनों तरह का आशीर्वाद प्राप्त हुआ।