श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 7: विशिष्ट कार्यों के लिए निर्दिष्ट अवतार  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  2.7.13 
 
 
क्षीरोदधावमरदानवयूथपाना-
मुन्मथ्नताममृतलब्धय आदिदेव: ।
पृष्ठेन कच्छपवपुर्विदधार गोत्रं
निद्राक्षणोऽद्रिपरिवर्तकषाणकण्डू: ॥ १३ ॥
 
अनुवाद
 
  तब आदि परमेश्वर मथानी के रूप में इस्तेमाल हो रहे मन्दराचल पर्वत के लिए धुरी (आधार स्थल) के रूप में कच्छप के रूप में अवतरित हुए। देवता और असुर अमृत निकालने के खातिर मन्दराचल को मथानी के रूप में बनाकर दुग्ध सागर का मंथन कर रहे थे। यह पर्वत आगे-पीछे घूम रहा था जिससे भगवान कच्छप की पीठ पर घिसाव होता जा रहा था, तब वे आधी नींद में थे और खुजलाहट महसूस कर रहे थे और उनकी पीठ घिसने लगी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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