तब आदि परमेश्वर मथानी के रूप में इस्तेमाल हो रहे मन्दराचल पर्वत के लिए धुरी (आधार स्थल) के रूप में कच्छप के रूप में अवतरित हुए। देवता और असुर अमृत निकालने के खातिर मन्दराचल को मथानी के रूप में बनाकर दुग्ध सागर का मंथन कर रहे थे। यह पर्वत आगे-पीछे घूम रहा था जिससे भगवान कच्छप की पीठ पर घिसाव होता जा रहा था, तब वे आधी नींद में थे और खुजलाहट महसूस कर रहे थे और उनकी पीठ घिसने लगी।