श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 6: पुरुष सूक्त की पुष्टि  »  श्लोक 46
 
 
श्लोक  2.6.46 
 
 
प्राधान्यतो यानृष आमनन्ति
लीलावतारान् पुरुषस्य भूम्न: ।
आपीयतां कर्णकषायशोषा-
ननुक्रमिष्ये त इमान् सुपेशान् ॥ ४६ ॥
 
अनुवाद
 
  हे नारद, अब एक-एक करके लीला अवतार कहे जाने वाले भगवान के दिव्य अवतारों का वर्णन करूँगा। उनके कार्यों को सुनने से कानों में जमा सारी गंदगी साफ हो जाती है। ये लीलाएँ सुनने में मधुर और आनंददायक हैं, इसलिए वे हमेशा मेरे हृदय में रहती हैं।
 
 
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध दो के अंतर्गत छठा अध्याय समाप्त होता है ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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