श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 6: पुरुष सूक्त की पुष्टि  »  श्लोक 32
 
 
श्लोक  2.6.32 
 
 
सृजामि तन्नियुक्तोऽहं हरो हरति तद्वश: ।
विश्वं पुरुषरूपेण परिपाति त्रिशक्तिधृक् ॥ ३२ ॥
 
अनुवाद
 
  उनकी इच्छा से मैं सृष्टि करता हूँ, भगवान शिव विनाश करते हैं और वे स्वयं अपने शाश्वत व्यक्तित्व रूप में सभी का पालन करते हैं। वे इन तीनों शक्तियों के शक्तिशाली नियामक हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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