नारायणे भगवति तदिदं विश्वमाहितम् ।
गृहीतमायोरुगुण: सर्गादावगुण: स्वत: ॥ ३१ ॥
अनुवाद
इसलिए सभी ब्रह्मांडों की भौतिक अभिव्यक्तियाँ उनकी शक्तिशाली भौतिक ऊर्जाओं में स्थित हैं, जिन्हें वो आत्मनिर्भरतापूर्वक स्वीकार करते हैं, यद्यपि वो भौतिक गुणों से हमेशा ही दूर रहते हैं।