श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 6: पुरुष सूक्त की पुष्टि  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  2.6.27 
 
 
गतयो मतयश्चैव प्रायश्चित्तं समर्पणम् ।
पुरुषावयवैरेते सम्भारा: सम्भृता मया ॥ २७ ॥
 
अनुवाद
 
  इस प्रकार मुझे यज्ञ के लिए आवश्यक सभी सामग्रियाँ और साजो-सामान भगवान के शारीरिक अंगों से ही प्राप्त करने पड़े। देवताओं के नामों का आह्वान करने से चरम लक्ष्य विष्णु की क्रमशः प्राप्ति हुई और इस प्रकार प्रायश्चित्त और पूर्णाहुति पूरी हुई।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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