श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 6: पुरुष सूक्त की पुष्टि  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  2.6.21 
 
 
सृती विचक्रमे विश्वङ्‍साशनानशने उभे ।
यदविद्या च विद्या च पुरुषस्तूभयाश्रय: ॥ २१ ॥
 
अनुवाद
 
  अपनी शक्तियों के संग समस्त जगत में व्याप्त होने के कारण श्री कृष्ण हर प्रकार के नियंत्रण कार्यों के, और भक्तिभाव पूर्ण सेवा कार्यों के स्वामी हैं. वे सृष्टि के प्रत्येक परिस्थिति में अज्ञान तथा सटीक जानकारी के भी स्वामी हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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