श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 6: पुरुष सूक्त की पुष्टि  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  2.6.10 
 
 
पराभूतेरधर्मस्य तमसश्चापि पश्‍चिम: ।
नाड्यो नदनदीनां च गोत्राणामस्थिसंहति: ॥ १० ॥
 
अनुवाद
 
  भगवान की पीठ पर हर तरह की हताशा और अज्ञानता तथा अनैतिकता का वास है। उनकी नसों से नदियाँ और नदियाँ बहती हैं, और उनकी हड्डियों पर बड़े-बड़े पहाड़ बने होते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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