श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 5: समस्त कारणों के कारण  »  श्लोक 42
 
 
श्लोक  2.5.42 
 
 
भूर्लोक: कल्पित: पद्‍भ्यां भुवर्लोकोऽस्य नाभित: ।
स्वर्लोक: कल्पितो मूर्ध्ना इति वा लोककल्पना ॥ ४२ ॥
 
अनुवाद
 
  अन्य लोग संपूर्ण ग्रह तंत्र को तीन श्रेणियों में विभाजित कर सकते हैं। पहली है निम्न ग्रहीय तंत्र जो पैरों पर है (पृथ्वी तक), दूसरी है मध्य ग्रहीय तंत्र जो नाभि पर है, और तीसरी है ऊपरी ग्रहीय तंत्र (स्वर्गलोक) जो छाती से लेकर परम पुरुष के सिर तक है।
 
 
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध दो के अंतर्गत पाँचवाँ अध्याय समाप्त होता है ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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