श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 5: समस्त कारणों के कारण  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  2.5.4 
 
 
यद्विज्ञानो यदाधारो यत्परस्त्वं यदात्मक: ।
एक: सृजसि भूतानि भूतैरेवात्ममायया ॥ ४ ॥
 
अनुवाद
 
  हे मेरे प्रिय पिता, आपके ज्ञान का स्रोत क्या है? किसकी छाया में आप रह रहे हैं? और किसके अधीन आप काम कर रहे हैं? आपकी वास्तविक स्थिति क्या है? क्या आप अकेले ही अपनी निजी शक्ति से सभी प्राणियों को भौतिक तत्वों से पैदा करते हैं?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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