श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 5: समस्त कारणों के कारण  »  श्लोक 35
 
 
श्लोक  2.5.35 
 
 
स एव पुरुषस्तस्मादण्डं निर्भिद्य निर्गत: ।
सहस्रोर्वङ्‌घ्रिबाह्वक्ष: सहस्राननशीर्षवान् ॥ ३५ ॥
 
अनुवाद
 
  यद्यपि भगवान् (महाविष्णु) कारणार्णव में शयन करते रहते हैं, किन्तु व्यवस्था के संचालन हेतु वे उससे बाहर निकल कर अपने को हिरण्यगर्भ के रूप में विभाजित करते हुए प्रत्येक ब्रह्माण्ड में प्रविष्ट हो जाते हैं और हजारों-हजारों पाँव, भुजा, मुँह, सिर वाला विराट रूप धारण कर लेते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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