श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 5: समस्त कारणों के कारण  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  2.5.3 
 
 
सर्वं ह्येतद् भवान् वेद भूतभव्यभवत्प्रभु: ।
करामलकवद् विश्वं विज्ञानावसितं तव ॥ ३ ॥
 
अनुवाद
 
  हे मेरे पिता, आप इस सबको वैज्ञानिक रूप से जानते हैं, क्योंकि जो भी पहले बना था, जो भी भविष्य में बनेगा और जो आज बन रहा है और जो भी ब्रह्मांड की सीमा में है, वे सब जैसे आंवला आपकी मुट्ठी में है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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