श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 4: सृष्टि का प्रक्रम  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  2.4.8 
 
 
नूनं भगवतो ब्रह्मन् हरेरद्भुतकर्मण: ।
दुर्विभाव्यमिवाभाति कविभिश्चापि चेष्टितम् ॥ ८ ॥
 
अनुवाद
 
  हे ज्ञानी ब्राह्मण, भगवान की दिव्य लीलाएँ सब अद्भुत हैं और वे समझ से परे प्रतीत होती हैं, क्योंकि बहुत से विद्वान पंडितों के द्वारा किये गये बहुत से प्रयास भी उन्हें समझने के लिये अपर्याप्त सिद्ध हुए हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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