श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 4: सृष्टि का प्रक्रम  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  2.4.6 
 
 
भूय एव विवित्सामि भगवानात्ममायया ।
यथेदं सृजते विश्वं दुर्विभाव्यमधीश्वरै: ॥ ६ ॥
 
अनुवाद
 
  मैं आपसे यह जानना चाहता हूँ कि ईश्वर अपनी निजी शक्तियों से इस रूप में इन विराट ब्रह्माण्डों की रचना कैसे कर लेते हैं, जिसकी कल्पना स्वर्ग के बड़े-बड़े देवता भी नहीं कर सकते।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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