श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 4: सृष्टि का प्रक्रम  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  2.4.5 
 
 
राजोवाच
समीचीनं वचो ब्रह्मन् सर्वज्ञस्य तवानघ ।
तमो विशीर्यते मह्यं हरे: कथयत: कथाम् ॥ ५ ॥
 
अनुवाद
 
  महाराज परीक्षित ने कहा : हे विद्वान ब्राह्मण, आप भौतिक दूषण से रहित होने के कारण सब कुछ जानते हैं, इसीलिए आपने मुझसे जो कुछ भी कहा है, वह मुझे पूर्ण रूप से उचित लगता है। आपकी बातें धीरे-धीरे मेरे अज्ञान रूपी अंधकार को दूर कर रही हैं, क्योंकि आप भगवान की कथाएँ सुना रहे हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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