प्रचोदिता येन पुरा सरस्वती
वितन्वताजस्य सतीं स्मृतिं हृदि ।
स्वलक्षणा प्रादुरभूत् किलास्यत:
स मे ऋषीणामृषभ: प्रसीदताम् ॥ २२ ॥
अनुवाद
जो सृष्टि के आरंभ में ब्रह्मा के हृदय में शक्तिशाली ज्ञान का विस्तार किया और सृष्टि तथा अपने विषय में पूर्ण ज्ञान की प्रेरणा दी और जो ब्रह्मा के मुख से प्रकट हुए, वे भगवान मुझ पर कृपालु रहें।