श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 4: सृष्टि का प्रक्रम  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  2.4.19 
 
 
स एष आत्मात्मवतामधीश्वर-
स्त्रयीमयो धर्ममयस्तपोमय: ।
गतव्यलीकैरजशङ्करादिभि-
र्वितर्क्यलिङ्गो भगवान् प्रसीदताम् ॥ १९ ॥
 
अनुवाद
 
  वे परमात्मा और सम्पूर्ण आत्म-साक्षात्कार प्राप्त आत्माओं के परम श्रेष्ठ प्रभु हैं। वे वेदों, धार्मिक ग्रंथों और तपस्याओं के साक्षात् स्वरूप हैं। उनको भगवान ब्रह्मा, शिव और वे सभी पूजते हैं जो किसी भी प्रकार के ढोंग से परे हैं। श्रद्धा और सम्मान के साथ पूजनीय होने के कारण, पूर्ण परमेश्वर मुझ पर प्रसन्न हों।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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