श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 4: सृष्टि का प्रक्रम  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  2.4.17 
 
 
तपस्विनो दानपरा यशस्विनो
मनस्विनो मन्त्रविद: सुमङ्गला: ।
क्षेमं न विन्दन्ति विना यदर्पणं
तस्मै सुभद्रश्रवसे नमो नम: ॥ १७ ॥
 
अनुवाद
 
  मैं पुन: पुन: सर्व मंगलकारी श्रीकृष्ण भगवान को आदरपूर्वक नमस्कार करता हूँ, क्योंकि बड़े-बड़े ज्ञानी ऋषि, बड़े-बड़े दानवीर, प्रतिष्ठित कार्य करने वाले, महान दार्शनिक और योगी, वेदपाठी और वैदिक सिद्धांतों के बड़े अनुयायी तक भी ऐसे महान गुणों को भगवान की सेवा में समर्पित किये बिना कोई कल्याण प्राप्त नहीं कर पाते।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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