श्री शुक उवाच
नम: परस्मै पुरुषाय भूयसे
सदुद्भवस्थाननिरोधलीलया ।
गृहीतशक्तित्रितयाय देहिना-
मन्तर्भवायानुपलक्ष्यवर्त्मने ॥ १२ ॥
अनुवाद
श्री शुकदेव गोस्वामी ने कहा: मैं पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान को प्रणाम करता हूं जो प्रकृति के तीनों गुणों को अपनाकर भौतिक जगत की सृष्टि करते हैं। वे हर शरीर में रहने वाले परम पूर्ण हैं और उनके तरीके अचिंतनीय हैं।