श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 3: शुद्ध भक्ति-मय सेवा : हृदय-परिवर्तन  »  श्लोक 24
 
 
श्लोक  2.3.24 
 
 
तदश्मसारं हृदयं बतेदं
यद् गृह्यमाणैर्हरिनामधेयै: ।
न विक्रियेताथ यदा विकारो
नेत्रे जलं गात्ररुहेषु हर्ष: ॥ २४ ॥
 
अनुवाद
 
  निश्चय ही वह हृदय पत्थर के समान है, जो एकाग्र होकर प्रभु के पवित्र नाम का जाप करने पर भी नहीं बदलता; जब हर्ष होता है, तो आँखों में आँसू नहीं छलकते और शरीर के रोम-रोम पुलकित नहीं होते।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.