श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 3: शुद्ध भक्ति-मय सेवा : हृदय-परिवर्तन  »  श्लोक 2-7
 
 
श्लोक  2.3.2-7 
 
 
ब्रह्मवर्चसकामस्तु यजेत ब्रह्मण: पतिम् ।
इन्द्रमिन्द्रियकामस्तु प्रजाकाम: प्रजापतीन् ॥ २ ॥
देवीं मायां तु श्रीकामस्तेजस्कामो विभावसुम् ।
वसुकामो वसून रुद्रान् वीर्यकामोऽथ वीर्यवान् ॥ ३ ॥
अन्नाद्यकामस्त्वदितिं स्वर्गकामोऽदिते:सुतान् ।
विश्वान्देवान् राज्यकाम: साध्यान्संसाधको विशाम् ॥ ४ ॥
आयुष्कामोऽश्विनौ देवौ पुष्टिकाम इलां यजेत् ।
प्रतिष्ठाकाम: पुरुषो रोदसी लोकमातरौ ॥ ५ ॥
रूपाभिकामो गन्धर्वान् स्त्रीकामोऽप्सर उर्वशीम् ।
आधिपत्यकाम: सर्वेषां यजेत परमेष्ठिनम् ॥ ६ ॥
यज्ञं यजेद् यशस्काम: कोशकाम: प्रचेतसम् ।
विद्याकामस्तु गिरिशं दाम्पत्यार्थ उमां सतीम् ॥ ७ ॥
 
अनुवाद
 
  व्यक्तिगत इच्छाओं की पूर्ति हेतु देवताओं की उपासना:

1. निर्विशेष ब्रह्मज्योति में लीन होने की इच्छा: वेदों के स्वामी (भगवान ब्रह्मा या विद्वान पुरोहित बृहस्पति) की पूजा।
2. प्रबल कामवासना: स्वर्ग के राजा इन्द्र की पूजा।
3. अच्छी सन्तान: प्रजापतियों की पूजा।
4. सौभाग्य: भौतिक जगत की अधीक्षिका दुर्गादेवी की पूजा।
5. अत्यंत शक्तिशाली बनना: अग्नि की पूजा।
6. केवल धन की इच्छा: वसुओं की पूजा।
7. महान वीर बनना: शिवजी के रुद्रावतारों की पूजा।
8. प्रचुर अन्न: अदिति की पूजा।
9. स्वर्ग प्राप्ति: अदिति के पुत्रों की पूजा।
10. सांसारिक राज्य: विश्वदेव की पूजा।
11. जनता में लोकप्रियता: साध्यदेव की पूजा।
12. दीर्घायु: अश्विनीकुमारों की पूजा।
13. पुष्ट शरीर: पृथ्वी की पूजा।
14. नौकरी (पद) का स्थायित्व: क्षितिज और पृथ्वी दोनों की पूजा।
15. सुन्दर बनना: गंधर्व-लोक के निवासियों की पूजा।
16. सुन्दर पत्नी: अप्सराओं और उर्वशी अप्सराओं की पूजा।
17. अन्यों पर शासन: ब्रह्मांड के प्रमुख भगवान ब्रह्माजी की पूजा।
18. स्थायी कीर्ति: भगवान की पूजा।
19. अच्छी बैंक-बचत: वरुणदेव की पूजा।
20. अच्छा वैवाहिक सम्बन्ध: सती देवी उमा, शिवजी की पत्नी, की पूजा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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