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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति
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अध्याय 3: शुद्ध भक्ति-मय सेवा : हृदय-परिवर्तन
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श्लोक 18
श्लोक
2.3.18
तरव: किं न जीवन्ति भस्त्रा: किं न श्वसन्त्युत ।
न खादन्ति न मेहन्ति किं ग्रामे पशवोऽपरे ॥ १८ ॥
अनुवाद
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क्या वृक्षों में जीवन नहीं है? क्या लोहार की धौंकनी में साँस नहीं चलती? हमारे आसपास क्या जानवर भोजन नहीं करते हैं? या वीर्य का त्याग नहीं करते हैं?
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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