श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 3: शुद्ध भक्ति-मय सेवा : हृदय-परिवर्तन  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  2.3.16 
 
 
वैयासकिश्च भगवान् वासुदेवपरायण: ।
उरुगायगुणोदारा: सतां स्युर्हि समागमे ॥ १६ ॥
 
अनुवाद
 
  व्यासपुत्र शुकदेव गोस्वामी भी दिव्य ज्ञान से परिपूर्ण थे और वसुदेव-पुत्र भगवान कृष्ण के महान भक्त भी थे। इसलिए भगवान कृष्ण पर अवश्य चर्चा होती रही होगी, क्योंकि बड़े-बड़े दार्शनिकों और महान भक्तों की सभा में कृष्ण के गुणों का गुणगान होता ही रहता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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