श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 10: भागवत सभी प्रश्नों का उत्तर है  »  श्लोक 41
 
 
श्लोक  2.10.41 
 
 
सत्त्वं रजस्तम इति तिस्र: सुरनृनारका: ।
तत्राप्येकैकशो राजन् भिद्यन्ते गतयस्त्रिधा ।
यदैकैकतरोऽन्याभ्यां स्वभाव उपहन्यते ॥ ४१ ॥
 
अनुवाद
 
  प्रकृति के विभिन्न गुणों सतो गुण, रजो गुण और तमो गुण के अनुसार विभिन्न प्राणी होते हैं, जिन्हें देवता, मनुष्य और नारकीय जीव कहते हैं। हे राजन, इतना ही नहीं, जब कोई एक गुण अन्य दो गुणों के साथ मिलता है, तो वह तीन गुणों में विभाजित हो जाता है और इस प्रकार प्रत्येक जीव अन्य गुणों से प्रभावित होता है और उनकी आदतें भी ग्रहण कर लेता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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