यदात्मनि निरालोकमात्मानं च दिदृक्षत: ।
निर्भिन्ने ह्यक्षिणी तस्य ज्योतिश्चक्षुर्गुणग्रह: ॥ २१ ॥
अनुवाद
जब सब कुछ अंधेरे में विद्यमान था, तब भगवान ने अपने आपको और अपनी सृष्टि को देखने की इच्छा की। तब आँखें, प्रकाशमान सूर्य देव, देखने की शक्ति और देखी जाने वाली वस्तुएँ - ये सभी प्रकट हुईं।