श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 10: भागवत सभी प्रश्नों का उत्तर है  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  2.10.18 
 
 
मुखतस्तालु निर्भिन्नं जिह्वा तत्रोपजायते ।
ततो नानारसो जज्ञे जिह्वया योऽधिगम्यते ॥ १८ ॥
 
अनुवाद
 
  मुँह में तालू होने से जीभ विकसित हुई। फिर अलग-अलग तरह के स्वाद आए ताकि जीभ उनका स्वाद ले सके।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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