श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 10: भागवत सभी प्रश्नों का उत्तर है  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  2.10.13 
 
 
एको नानात्वमन्विच्छन् योगतल्पात् समुत्थित: ।
वीर्यं हिरण्मयं देवो मायया व्यसृजत् त्रिधा ॥ १३ ॥
 
अनुवाद
 
  योगनिद्रा की खाट पर लेटे हुए भगवान ने एक स्वर्णिम वीर्य-प्रतीक का निर्माण किया, जो उनकी बाहरी शक्ति का प्रतीक था, उस इच्छा से कि स्वयं से ही सभी प्रकार के जीव प्रकट हों।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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