श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 1: ईश अनुभूति का प्रथम सोपान  »  श्लोक 37
 
 
श्लोक  2.1.37 
 
 
ब्रह्माननं क्षत्रभुजो महात्मा
विडूरुरङ्‌घ्रिश्रितकृष्णवर्ण: ।
नानाभिधाभीज्यगणोपपन्नो
द्रव्यात्मक: कर्म वितानयोग: ॥ ३७ ॥
 
अनुवाद
 
  विराट पुरुष का मुख ब्राह्मण है, उनकी भुजाएँ क्षत्रिय हैं, उनकी जाँघें वैश्य हैं और शूद्र उनके चरणों में रहते हैं। सभी पूजनीय देवता उनके अधीन हैं और हर किसी का कर्तव्य है कि वह प्रभु को खुश करने के लिए यथासंभव वस्तुओं से यज्ञ करे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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