श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 1: ईश अनुभूति का प्रथम सोपान  »  श्लोक 36
 
 
श्लोक  2.1.36 
 
 
वयांसि तद्व्याकरणं विचित्रं
मनुर्मनीषा मनुजो निवास: ।
गन्धर्वविद्याधरचारणाप्सर:
स्वरस्मृतीरसुरानीकवीर्य: ॥ ३६ ॥
 
अनुवाद
 
  पक्षियों की विविधताएँ उनकी कुशल कलात्मक समझ की ओर इशारा करती हैं। मानवता के पिता, मनु, उनकी आदर्श बुद्धि के प्रतीक हैं और मानवता उनके निवास स्थान है। गंधर्व, विद्याधर, चारण और देवदूत जैसी दैवी योनियाँ उनकी संगीतमय लय को दर्शाती हैं और राक्षसी सैनिक उनकी अद्भुत शक्ति के प्रतिनिधित्व हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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