श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 1: ईश अनुभूति का प्रथम सोपान  »  श्लोक 32
 
 
श्लोक  2.1.32 
 
 
व्रीडोत्तरौष्ठोऽधर एव लोभो
धर्म: स्तनोऽधर्मपथोऽस्य पृष्ठम् ।
कस्तस्य मेढ्रं वृषणौ च मित्रौ
कुक्षि: समुद्रा गिरयोऽस्थिसङ्घा: ॥ ३२ ॥
 
अनुवाद
 
  लज्जा भगवान् के ऊपरी होठ के समान है, लालसा उनकी ठुड्डी के समान है, धर्म उनके वक्ष:स्थल के समान है और अधर्म उनकी पीठ जैसा है। भौतिक जगत में सभी जीवों के जन्म के लिए जिम्मेदार ब्रह्मा जी उनके लिंग के समान हैं, और मित्रा-वरुण उनके दोनों अंडकोश के समान हैं। समुद्र उनकी कमर के समान है और पहाड़ और पर्वत उनकी हड्डियों के ढेर के समान हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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