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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति
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अध्याय 1: ईश अनुभूति का प्रथम सोपान
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श्लोक 28
श्लोक
2.1.28
उर:स्थलं ज्योतिरनीकमस्य
ग्रीवा महर्वदनं वै जनोऽस्य ।
तपो वराटीं विदुरादिपुंस:
सत्यं तु शीर्षाणि सहस्रशीर्ष्ण: ॥ २८ ॥
अनुवाद
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विराट रूप धारण करने वाले आदि पुरुष की छाती प्रकाशमान ग्रहों वाला मंडल है, उनकी गर्दन महर्लोक है, उनका मुंह जनलोक है और उनका माथा तपलोक है। सबसे ऊंचा लोक जिसे सत्यलोक कहा जाता है, एक हजार सिरों वाले आदि पुरुष का सिर है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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