श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 1: ईश अनुभूति का प्रथम सोपान  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  2.1.23 
 
 
श्रीशुक उवाच
जितासनो जितश्वासो जितसङ्गो जितेन्द्रिय: ।
स्थूले भगवतो रूपे मन: सन्धारयेद्धिया ॥ २३ ॥
 
अनुवाद
 
  शुकदेव गोस्वामी ने उत्तर दिया: मनुष्य को चाहिए कि आसन को नियंत्रित करना चाहिए, प्राणायाम द्वारा श्वास-क्रिया को नियमित करना चाहिए और इस तरह मन और इन्द्रियों को वश में करना चाहिए। इसके पश्चात बुद्धिपूर्वक मन को भगवान् की स्थूल शक्तियों (विराट रूप) में लगाना चाहिए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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