श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 1: ईश अनुभूति का प्रथम सोपान  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  2.1.19 
 
 
तत्रैकावयवं ध्यायेदव्युच्छिन्नेन चेतसा ।
मनो निर्विषयं युक्त्वा तत: किञ्चन न स्मरेत् ।
पदं तत्परमं विष्णोर्मनो यत्र प्रसीदति ॥ १९ ॥
 
अनुवाद
 
  तत्पश्चात्, श्री विष्णु के पूर्ण शरीर की अवधारणा को हटाये बिना, एक-एक करके विष्णु के अंगों का ध्यान करना चाहिए। इस प्रकार मन समस्त इन्द्रिय-विषयों से मुक्त हो जाता है। फिर मनन के लिए कोई अन्य वस्तु नहीं रहनी चाहिए। क्योंकि भगवान विष्णु ही परम सत्य हैं, इसलिए मन केवल उन्हीं में ही रम पाता है।
 
 
 
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