श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 1: ईश अनुभूति का प्रथम सोपान  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  2.1.15 
 
 
अन्तकाले तु पुरुष आगते गतसाध्वस: ।
छिन्द्यादसङ्गशस्त्रेण स्पृहां देहेऽनु ये च तम् ॥ १५ ॥
 
अनुवाद
 
  मृत्यु के अंतिम चरण में, मनुष्य को साहसी होना चाहिए और मृत्यु से भयभीत नहीं होना चाहिए। किन्तु उसे भौतिक शरीर और इससे संबंधित सभी वस्तुओं और उनकी सभी इच्छाओं से अपना लगाव त्याग देना चाहिए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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