वयं ते परितुष्टा: स्म त्वद् बृहद्व्रतचर्यया ।
वरं प्रतीच्छ भद्रं ते वरदोऽस्मि त्वदीप्सितम् ॥ ३ ॥
अनुवाद
तुम्हारा आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत हमें बहुत पसंद आया है। अब जो भी वरदान तुम चाहो, मांग लो क्योंकि मैं तुम्हारी इच्छा पूर्ण कर सकता हूं। तुम सभी सौभाग्य से युक्त हो जाओ।