श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 12: पतनोन्मुख युग  »  अध्याय 9: मार्कण्डेय ऋषि को भगवान् की मायाशक्ति के दर्शन  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  12.9.3 
 
 
वयं ते परितुष्टा: स्म त्वद् बृहद्‌व्रतचर्यया ।
वरं प्रतीच्छ भद्रं ते वरदोऽस्मि त्वदीप्सितम् ॥ ३ ॥
 
अनुवाद
 
  तुम्हारा आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत हमें बहुत पसंद आया है। अब जो भी वरदान तुम चाहो, मांग लो क्योंकि मैं तुम्हारी इच्छा पूर्ण कर सकता हूं। तुम सभी सौभाग्य से युक्त हो जाओ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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