श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 12: पतनोन्मुख युग  »  अध्याय 8: मार्कण्डेय द्वारा नर-नारायण ऋषि की स्तुति  »  श्लोक 36
 
 
श्लोक  12.8.36 
 
 
स तत्सन्दर्शनानन्दनिर्वृतात्मेन्द्रियाशय: ।
हृष्टरोमाश्रुपूर्णाक्षो न सेहे तावुदीक्षितुम् ॥ ३६ ॥
 
अनुवाद
 
  उन्हें देखने से उत्पन्न हुए हर्ष और भावविभोरता ने मार्कण्डेय के शरीर, मन और इन्द्रियों को संतुष्ट कर दिया था और उनके शरीर पर रोमांच हो आया था और उनकी आँखों से आँसू छलक पड़े थे। भावनाओं से अभिभूत होकर मार्कण्डेय के लिए उन्हें देखना मुश्किल हो रहा था।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.