स तत्सन्दर्शनानन्दनिर्वृतात्मेन्द्रियाशय: ।
हृष्टरोमाश्रुपूर्णाक्षो न सेहे तावुदीक्षितुम् ॥ ३६ ॥
अनुवाद
उन्हें देखने से उत्पन्न हुए हर्ष और भावविभोरता ने मार्कण्डेय के शरीर, मन और इन्द्रियों को संतुष्ट कर दिया था और उनके शरीर पर रोमांच हो आया था और उनकी आँखों से आँसू छलक पड़े थे। भावनाओं से अभिभूत होकर मार्कण्डेय के लिए उन्हें देखना मुश्किल हो रहा था।