श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 12: पतनोन्मुख युग  »  अध्याय 8: मार्कण्डेय द्वारा नर-नारायण ऋषि की स्तुति  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  12.8.21 
 
 
उद्यच्चन्द्रनिशावक्त्र: प्रवालस्तबकालिभि: ।
गोपद्रुमलताजालैस्तत्रासीत् कुसुमाकर: ॥ २१ ॥
 
अनुवाद
 
  तब मार्कण्डेय के आश्रम में वसन्त ऋतु आ गई। संध्याकालीन आकाश उदय होते चन्द्रमा के प्रकाश से चमक रहा था, मानो वह वसन्त का चेहरा हो। पेड़ों और लताओं के समूहों को नई कोंपलें और ताजे फूलों ने लगभग ढँक लिया था।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.