सूत उवाच
एवं स्तुत: स भगवान् वाजिरूपधरो रवि: ।
यजूंष्ययातयामानि मुनयेऽदात् प्रसादित: ॥ ७३ ॥
अनुवाद
सूत गोस्वामी ने कहा: ऐसी स्तुति सुनकर शक्तिशाली सूर्य देवता प्रसन्न हुए। उन्होंने घोड़े का रूप धारण किया और याज्ञवल्क्य ऋषि को वे यजुर्वेद मंत्र प्रदान किए जो पहले मानव समाज में अज्ञात थे।