श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 12: पतनोन्मुख युग  »  अध्याय 6: महाराज परीक्षित का निधन  »  श्लोक 34
 
 
श्लोक  12.6.34 
 
 
अतिवादांस्तितिक्षेत नावमन्येत कञ्चन ।
न चेमं देहमाश्रित्य वैरं कुर्वीत केनचित् ॥ ३४ ॥
 
अनुवाद
 
  इंसान को सारे अपमानों को सहन करना चाहिए और किसी भी व्यक्ति के सामने उचित सम्मान से कभी चूकना नहीं चाहिए। भौतिक शरीर से अपनी पहचान बना कर, किसी से भी दुश्मनी पैदा नहीं करनी चाहिए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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