श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 12: पतनोन्मुख युग  »  अध्याय 6: महाराज परीक्षित का निधन  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  12.6.3 
 
 
नात्यद्भ‍ुतमहं मन्ये महतामच्युतात्मनाम् ।
अज्ञेषु तापतप्तेषु भूतेषु यदनुग्रह: ॥ ३ ॥
 
अनुवाद
 
  मैं यह जरा भी आश्चर्य की बात नहीं मानता कि आप जैसे महापुरुष, जिनके मन सदैव भगवान में लीन रहते हैं, हम जैसे मूर्ख जीवों पर दया करते हैं, जो भौतिक जीवन की समस्याओं से ग्रस्त रहते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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