सूत उवाच
एतन्निशम्य मुनिनाभिहितं परीक्षिद्
व्यासात्मजेन निखिलात्मदृशा समेन ।
तत्पादमूलमुपसृत्य नतेन मूर्ध्ना
बद्धाञ्जलिस्तमिदमाह स विष्णुरात: ॥ १ ॥
अनुवाद
सूत गोस्वामी ने कहा : व्यासदेव के पुत्र, स्वरूपसिद्ध तथा समदृष्टि वाले, शुकदेव गोस्वामी द्वारा जो कुछ कहा गया था उसे सुन कर महाराज परीक्षित नम्रतापूर्वक उनके चरणकमलों में गये। मुनि के चरणों में अपना शीश नवाते हुए, सम्मान में हाथ जोड़े, जीवन-भर भगवान् विष्णु के संरक्षण में रह चुके राजा ने इस प्रकार कहा।