श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 12: पतनोन्मुख युग  »  अध्याय 5: महाराज परीक्षित को शुकदेव गोस्वामी का अन्तिम उपदेश  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  12.5.1 
 
 
श्रीशुक उवाच
अत्रानुवर्ण्यतेऽभीक्ष्णं विश्वात्मा भगवान् हरि: ।
यस्य प्रसादजो ब्रह्मा रुद्र: क्रोधसमुद्भ‍व: ॥ १ ॥
 
अनुवाद
 
  श्री शुकदेव गोस्वामी ने कहा: इस श्रीमद्भागवत में भगवान हरि का विस्तार से वर्णन किया गया है जो सभी प्राणियों की आत्मा हैं। जब वो प्रसन्न होते हैं तो ब्रह्माजी उत्पन्न होते हैं और जब वो क्रोधित होते हैं तो रुद्र का जन्म होता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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